अजीब सी दहशत है आजकल के दौर में

अजीब सी दहशत है आजकल के दौर में।
सहमी सी तबीयत है आजकल के दौर में।।

अगले की शक्ल देख करके बात कीजिये।
ये अंदाज जेहानत है आजकल के दौर में।।

इक दूसरे को यूँ ही कत्ल कर रहे हैं लोग ।
यही तल्ख हकीकत है आजकल के दौर में।।

नाउम्मीद है इतना आदमी से आदमी।
मुलाकात तिजारत है आजकल के दौर में।।

जी ले रहे हैं लोग राकिम किसी तरह।
इतनी तो गनीमत है आजकल के दौर में।।

मौला मौला बोल के नाचूँ

मौला मौला बोल के नाचूँ।
गलियों गलियों डोल के नाचूँ।।

मैं हूँ खुदा का मेरा खुदा।
जो मेरा वो तेरा खुदा।।
रिश्ता तेरा-मेरा खुदा।
नाते हैं अनमोल के नाचूँ।।

रंग तोरे रंग जाऊँ अली।
तोरे रंग में नहाऊँ अली।।
खुद में तोहे बसाऊँ अली।
खुद में तोहे घोल के नाचूँ।।

दरिया अल्ला पानी अल्ला।
अल्ला मौज रवानी अल्ला।।
राकिम मेरा जानी अल्ला।
क्योंकर न दिल खोल के नाचूँ।।

अल्ला बोल दमादम बोल

अल्ला बोल दमादम बोल।
मौला बोल दमादम बोल।।

गीता सच्ची कुरान है सच्ची।
पूजा सच्ची अजान है सच्ची।।
नानक सच है ईसा सच है।
मंदिर सच है कलीसा सच है।।
बंदा खुदा का जो सच बोले।
सच्चा बोल दमादम बोल।।

सच जब कहना खुल के कहना।
सच्ची बात पे कायम रहना।।
अफवाहों के संग न बहना।
जुल्म कोई हो कभी न सहना।।
मुर्शिद मेरा सिखलाया है।
जैसा बोल दमादम बोल।।

सब खोना है जो पाना है।
इक दिन सबको मिट जाना है।।
ऐसा बोल जो खुद को भाये।
गैर का दिल भी खुश हो जाये।।
राकि़म कहता बोल अगर तो।
अच्छा बोल दमादम बोल।।

है गरूर कितना किस कदर के देखिये

है गरूर कितना किस कदर के देखिये।
मिजाज सिर्फ बदलती नजर के देखिये।।

कल की खबर नहीं यहाँ किसी को है मगर।
इंतजाम हो रहे हैं उम्र भर के देखिये।।

बात समझने की जरूरत नहीं कोई।
रंग सिर्फ बात के असर के देखिये।।

कुछ और नहीं लगेगी तमाशे के सिवा।
जिन्दगी से खुद को दूर कर के देखिये।।

दिखते हैं एक जैसे कमजर्फ और गहरे।
असलियत को दरिया में उतर के देखिये।।

अपनी नजर में आप गुनहगार तो नहीं।
अपने गिरेबां में झांक कर के देखिये।।

जर्रे -जर्रे में खुदा होता है राकिम ।
शर्त है जमीन को झुक कर के देखिये।।

रात की परछाईयाँ समेंटने चलो

रात की परछाईयाँ, समेंटने चलो।
फैली हुयी तन्हाईयाँ, समेंटने चलो।।

पत्तों पे सोयी हुई है, नीम रोशनी।
चाँद की बीनाइयाँ, समेंटने चलो।।

रेत है या समन्दर की, बदगुमानी है।
आँख से गहराइयाँ, समेंटने चलो।।

जलते बुझते जुगनुँओं की कतार में।
अंधेरों की जेबाइयाँ, समेंटने चलो।

आज उसके कूचे,तन्हा चलो राकिम।
अपनी ही रूस्वाइयाँ, समेंटने चलो।।

जब तक है साँस तब तलक है रिश्तेदारियाँ

जब तक है साँस तब तलक है रिश्तेदारियाँ।
करता नहीं कोई कफस की गमगुसारियाँ।।

आँखों में महकती है उसके फूल की खुश्बू।
हवाओं में है रंग की फरेबकारियाँ।।

शतरंज का हर मोहरा है पशोपेश में।
हर चाल पे शिकश्त की हैं एतबारियाँ।।

है निगाह शातिर सभी की यहाँ पर।
नाहक ही कर रहे हो आप पर्दादारियाँ।।

शिकश्तजदा होना है सबको एक दिन।
जी चाहे करे कोई कितनी होशियारियाँ।।

ये दराजदस्त लोग ये दराजदस्ती।
किसने सिखाई आदमी को खूँख्वारियाँ।।

राकिम जी मेरी जानिब आता है कौन ये।
किसको हैं रास आई फरामोशकारियाँ।।

इतना अता किया था खुदा ने हुनर उसे

इतना अता किया था खुदा ने हुनर उसे।
देखा तो देखता ही रहा दीदावर उसे।।

मुझसे कहीं ज्यादा मुझको वो समझता है।
जानता हूँ मैं भी उससे बेशतर उसे।।

अपनी निगाहें बाँध दी है उसके पाँव में।
यूँ ही नहीं कहती है आँखे हमसफर उसे।।

बातों के जख्मों का तर्जबा उसको ऐसा है।
कहता है कि लगते हैं भले नेश्तर उसे।।

थी उसकी हिचकियों की उम्र मेरे बराबर।
इतना याद हमने किया उम्रभर उसे।।

मुमकिन नहीं है फिर भी करता हूँ कोशिशें।
क्या बुरा है भूल जाऊँ मैं अगर उसे।।

आँखों के माथे पर पसीना आ गया राकिम।
पलकों के पाँव थक गये हैं ढूँढकर उसे।।

मौत हो या जिन्दगी हो बराबर का खौफ है

मौत हो या जिन्दगी हो बराबर का खौफ है।
एक पल का खौफ है उम्र भर का खौफ है।।

हैं लोग मुब्तिला यहाँ खौफ ए मुनाफा में।
खुदा का खौफ है न पयंबर का खौफ है।।

इस जलते हुए शहर की परवाह है किसको।
हर शख्स को सिफत अपने घर का खौफ है।।

सूराख छोटा है मगर जब से हुआ है।
कश्तियों के जेहन में समन्दर का खौफ है।।

अब बेवकूफों के हाथ में है कोहनूर।
अंजाम का कियास दीदावर का खौफ है।।

तहरीर हथेली की देखता है बार बार।
आँखों में उसकी कितना मुकद्दर का खौफ है।।

जिस खौफ से खौफजदा राकिम तुम हो।
सुनते हैं वही खौफ बेशतर का खौफ है।।

इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर

इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर।
लगते नहीं हैं अच्छे किसी को किसी के तौर।।

जी करता है कि हाथों से आँखें समेट लूँ।
देखे नहीं जाते हैं मुझसे जिन्दगी के तौर।।

गरूर बडप्पन का दोस्तों को हो गया।
आ गये हैं तौर में अब बेरूखी के तौर।।

अपने चलन को देखना यहाँ गुनाह है।
खुद को छोड़ देखिये यहाँ सभी के तौर।।

है नाव धूप की मेरी दरिया है रेत का।
चलते हैं हम सराब में लेकर नदी के तौर।।

जेहन मुनाफाखोर है दिल बेईमान है।
खुदगर्ज आजकल हैं बहुत दोस्ती के तौर।।

लगती है आसान मौत ऐसे लोगों को।
देखे हैं जिन लोगों ने मुफलिसी के तौर।।

मुश्किल हो चाहें जितना रास्ता न बदलेगा

मुश्किल हो चाहें जितना रास्ता न बदलेगा।
हमारे दिल की जिद्द है कि अरमाँ न बदलेगा।।

नाहक ही नहीं तोड़ा गया नामुराद आखिर।
कहता था आईना कि वो चेहरा न बदलेगा।।

अदने को क्या अदना कहना न छोड़ेंगें।
क्या इन बड़े लोगों का सलीका न बदलेगा।।

अव्वल नहीं आखिर नहीं दरम्याँ नहीं।
तुम्ही कहो कि वक्त ये कहाँ न बदलेगा।।

तकदीर की तहरीर को पढता है बार बार।
लिखा है कि तकदीर का लिखा न बदलेगा।।

बज्मेगदागरान का बदलेगा न माहौल।
राकिम क्या कभी भूख का मुद्दा न बदलेगा।।

गोपू भाई


हालाँकि मित्र की निन्दा करना पाप की श्रेणी में आता है फिर भी मानवीय हित को श्रेष्ठ मानकर मैं अपने मित्र गोपू भाई के बारे में बताता हूँ। गोपू भाई देखने में इतने भले और भोले लगते हैं कि आपको चिडि़याघर के पिंजड़ों में बन्द जानवरों की याद आ जायेगी।जिस तरह चिडि़याघर के खूँख्वार जानवर पिजड़े की सलाखों का लिहाज करते हुए मर्यादित व्यवहार करते हैं।उसी प्रकार गोपू भाई सामाजिक मर्यादाओं की सलाखों का लिहाज करते हुए संयमित आचरण करते हैं।उदाहरण के तौर पर गोपू भाई शास्त्रीय संगीत के गायन तथा वादन समारोहों में बतौर श्रोता अक्सर देखे जाते हैं लेकिन अन्दर ही अन्दर अपनी आत्मा पर अत्याचार करते हैं क्योंकि वास्तव में गोपू भाई को जुआ खेलना, घटिया फिल्मी गाने सुनना,फेरी वाले के गोलगप्पे खाना, गुलेल से चिडि़या मारना,चाय की दुकान पर बैठकर डींगे हाँकना साहित्य तथा संगीत की गोष्ठियों से अधिक प्रिय है।
एक दिन बाल कटवाने के लिए गोपू भाई सैलून में बैठे थे और आदत के अनुसार नाई को आदेश पर आदेश दिये जा रहे थे। पुलिस, कोर्ट, कचहरी,जेल इत्यादि का अगर चक्कर नहीं होता तो नाई यकीनन गोपू भाई की गर्दन पर उस्तरा रेत देता लेकिन नाई अपने भविष्य का ख्याल करके इस घटना को अंजाम नहीं दे सका।
गोपू भाई पैसे की कीमत समझते हैं इसीलिए दियासलाई की डिब्बी खरीदने के बाद तीलियाँ गिनकर ये तसल्ली कर लेते हैं कि डिब्बी पर तीलियों की जितनी संख्या मुद्रित है उतनी तीलियाँ वास्तव में उन्हें प्राप्त हुई हैं।झाड़ू खरीदते वक्त आँखों ही आँखों में प्रत्येक सीक की सेहत और सीकों की तादाद का सटीक अंदाजा लगा लेना गोपू भाई के लिए कोई मुश्किल काम नहीं।पान में इतने तरह का जर्दा डलवाते हैं कि पान बेचने वाले को आर्थिक नुकसान हो जाता है।
आचरण के मामले में गोपू भाई परिवर्तनशील प्राणी हैं । तरह तरह के लोगों के साथ तरह तरह का वर्ताव करने की क्रिया में वे चरम स्तर तक पारंगत हैं।सामथ्‍​र्यवान आदमी के सामने खीस निपोरते हुए इतना सिकुड़ जाते हैं कि कभी कभी लगता है कि अपने अस्तित्व को ही विलुप्त न कर बैठें।वरना छोटे मोटे लोगों के सामने हमेशा अपने वृह्द रूप में ही नजर आते हैं वृह्द रूप का मतलब उसी रूप के समरूप है जैसा कृष्ण भगवान नें अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दिखाया था।
गोपू भाई बच्चों को अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे पढने में इतने अच्छे थे कि अध्यापक उन्हें रोज शाबाशी देते थे तथा परीक्षाफल के उपरान्त प्रधानाचार्य उन्हें पारितोषिक देकर सम्मानित करते थे।दरअस्ल हमारे जैसे उनके कुछ मित्र ही इस सत्य को जानते हैं कि गोपू भाई द्वारा अपने छात्र जीवन के बारे में सुनाये जाने वाले समस्त वृत्तांत सरासर असत्य हैं।सत्य कुछ इस प्रकार है कि जिसके अनुसार गोपू भाई अपने छात्र जीवन में अध्यापक द्वारा नियमित शारेरिक तथा मौखिक रूप से दण्डित किये जाते थे और परीक्षाफल के उपरान्त प्रधानाचार्य हर बार गोपू भाई के पिता जी को विद्यालय बुलाकर शिकायतों की फेहरिश्त सुपुर्द करते थे।
कल मैं गोपू भाई के घर गया तो वे अपने फटे हुए पैजामे का नाड़ा निकालकर नये पैजामे में लगा रहे थे। उन्होंने हमें यह भी बताया कि बिना नाड़े का पैजामा सिलवाने पर दर्जी दो रूपये कम लेता है।हम दोनो नें बैठकर अपने दफ्तर तथा शहर के लोगों के आचरण की समीक्षा की, मुहल्ले की स्त्रियों तथा बच्चों के बारे में बातें की,गोपू भाई ने मेरी तारीफ की और मैने गोपू भाई की तारीफ की उसके बाद हम दोनो पान की दुकान की तरफ चल पड़े।आपको मैं यह बताना चाहूँगा कि गोपू भाई के बारे में जैसे मेरे विचार हैं वैसे ही मेरे बारे में गोपू भाई के भी विचार हैं।हम दोनो में इतनी वैचारिक समानता है कि हमारी अखंड मित्रत्रा अनवरत दीर्घायु होती रहेगी इसमें कोई संशय नहीं ।

ढल रही है धीरे धीरे, शाम देखिये

ढल रही है धीरे धीरे, शाम देखिये।
आगाजे रोशनी का, अंजाम देखिये।।

लोग जी रहे हैं, इस तरह से जिन्दगी।
ले रहे हों जैसे, खुद से इंतकाम देखिये।।

कसूरवार और हैं, गुनाहगार और।
हम हो रहे हैं मुफ्त में, बदनाम देखिये।।

देखती है सब्र से , मौत आप को।
आप जिन्दगी के, इंतजाम देखिये।।

रंग और ढंग के, मतलब को समझिये।
राकिम जी मंसूबा ए सलाम देखिये।।

इन गुरूर वालों का, अल्लाह भला करें

इन गुरूर वालों का, अल्लाह भला करें।
हमको क्या पड़ी है, कि शिक्वा गिला करें।।

अब भूलने लगे हैं, हमको दोस्तों के नाम।
सोचा है बेवजह कभी, उनसे मिला करें।।

काइदे कानून की, बंदिश है चमन में।
वरना यहाँ पे फूल तो, खुलकर खिला करें।।

बिखरे हैं जा ब जा यहाँ, पत्ते जमीन पर।
कह दो हवाओं से कि, सम्हलकर चला करें।।

बरकरार रहे राकिम, जीने की तमन्ना।
खुदाया अता खुशी का, वो सिलसिला करें।।

लगती है धूप, क्योंकर परछाई दूर से

लगती है धूप, क्योंकर परछाई दूर से।
होती है जुदा, शै की शनाशाई दूर से।।

अंदाजा उम्र भर न लगा, उनको दरिया का।
जो लोग देखते रहे, गहराई दूर से।।

तमाशे के हुनर और, काबिलियत को तै।
मुद्दत से करते आये, तमाशाई दूर से।।

इक खाक की लकीर, सी आती है दूर से।
ये आग तो किसी ने, है लगाई दूर से।।

फरेब को कहीं से, मुनासिब है देखना।
कब देती है हकीकत, दिखाई दूर से।।

हर लफ्ज पे उसके, गर्द थी राह की।
लगता था बात चल के, थी आई दूर से।।

तुम गिरने के खौफ से,वाकिफ नहीं राकिम।
तुमने देखी है परवाज, की उँचाई दूर से।।