रात की परछाईयाँ समेंटने चलो

रात की परछाईयाँ, समेंटने चलो।
फैली हुयी तन्हाईयाँ, समेंटने चलो।।

पत्तों पे सोयी हुई है, नीम रोशनी।
चाँद की बीनाइयाँ, समेंटने चलो।।

रेत है या समन्दर की, बदगुमानी है।
आँख से गहराइयाँ, समेंटने चलो।।

जलते बुझते जुगनुँओं की कतार में।
अंधेरों की जेबाइयाँ, समेंटने चलो।

आज उसके कूचे,तन्हा चलो राकिम।
अपनी ही रूस्वाइयाँ, समेंटने चलो।।

जब तक है साँस तब तलक है रिश्तेदारियाँ

जब तक है साँस तब तलक है रिश्तेदारियाँ।
करता नहीं कोई कफस की गमगुसारियाँ।।

आँखों में महकती है उसके फूल की खुश्बू।
हवाओं में है रंग की फरेबकारियाँ।।

शतरंज का हर मोहरा है पशोपेश में।
हर चाल पे शिकश्त की हैं एतबारियाँ।।

है निगाह शातिर सभी की यहाँ पर।
नाहक ही कर रहे हो आप पर्दादारियाँ।।

शिकश्तजदा होना है सबको एक दिन।
जी चाहे करे कोई कितनी होशियारियाँ।।

ये दराजदस्त लोग ये दराजदस्ती।
किसने सिखाई आदमी को खूँख्वारियाँ।।

राकिम जी मेरी जानिब आता है कौन ये।
किसको हैं रास आई फरामोशकारियाँ।।

इतना अता किया था खुदा ने हुनर उसे

इतना अता किया था खुदा ने हुनर उसे।
देखा तो देखता ही रहा दीदावर उसे।।

मुझसे कहीं ज्यादा मुझको वो समझता है।
जानता हूँ मैं भी उससे बेशतर उसे।।

अपनी निगाहें बाँध दी है उसके पाँव में।
यूँ ही नहीं कहती है आँखे हमसफर उसे।।

बातों के जख्मों का तर्जबा उसको ऐसा है।
कहता है कि लगते हैं भले नेश्तर उसे।।

थी उसकी हिचकियों की उम्र मेरे बराबर।
इतना याद हमने किया उम्रभर उसे।।

मुमकिन नहीं है फिर भी करता हूँ कोशिशें।
क्या बुरा है भूल जाऊँ मैं अगर उसे।।

आँखों के माथे पर पसीना आ गया राकिम।
पलकों के पाँव थक गये हैं ढूँढकर उसे।।

मौत हो या जिन्दगी हो बराबर का खौफ है

मौत हो या जिन्दगी हो बराबर का खौफ है।
एक पल का खौफ है उम्र भर का खौफ है।।

हैं लोग मुब्तिला यहाँ खौफ ए मुनाफा में।
खुदा का खौफ है न पयंबर का खौफ है।।

इस जलते हुए शहर की परवाह है किसको।
हर शख्स को सिफत अपने घर का खौफ है।।

सूराख छोटा है मगर जब से हुआ है।
कश्तियों के जेहन में समन्दर का खौफ है।।

अब बेवकूफों के हाथ में है कोहनूर।
अंजाम का कियास दीदावर का खौफ है।।

तहरीर हथेली की देखता है बार बार।
आँखों में उसकी कितना मुकद्दर का खौफ है।।

जिस खौफ से खौफजदा राकिम तुम हो।
सुनते हैं वही खौफ बेशतर का खौफ है।।

इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर

इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर।
लगते नहीं हैं अच्छे किसी को किसी के तौर।।

जी करता है कि हाथों से आँखें समेट लूँ।
देखे नहीं जाते हैं मुझसे जिन्दगी के तौर।।

गरूर बडप्पन का दोस्तों को हो गया।
आ गये हैं तौर में अब बेरूखी के तौर।।

अपने चलन को देखना यहाँ गुनाह है।
खुद को छोड़ देखिये यहाँ सभी के तौर।।

है नाव धूप की मेरी दरिया है रेत का।
चलते हैं हम सराब में लेकर नदी के तौर।।

जेहन मुनाफाखोर है दिल बेईमान है।
खुदगर्ज आजकल हैं बहुत दोस्ती के तौर।।

लगती है आसान मौत ऐसे लोगों को।
देखे हैं जिन लोगों ने मुफलिसी के तौर।।