मौत हो या जिन्दगी हो बराबर का खौफ है

मौत हो या जिन्दगी हो बराबर का खौफ है।
एक पल का खौफ है उम्र भर का खौफ है।।

हैं लोग मुब्तिला यहाँ खौफ ए मुनाफा में।
खुदा का खौफ है न पयंबर का खौफ है।।

इस जलते हुए शहर की परवाह है किसको।
हर शख्स को सिफत अपने घर का खौफ है।।

सूराख छोटा है मगर जब से हुआ है।
कश्तियों के जेहन में समन्दर का खौफ है।।

अब बेवकूफों के हाथ में है कोहनूर।
अंजाम का कियास दीदावर का खौफ है।।

तहरीर हथेली की देखता है बार बार।
आँखों में उसकी कितना मुकद्दर का खौफ है।।

जिस खौफ से खौफजदा राकिम तुम हो।
सुनते हैं वही खौफ बेशतर का खौफ है।।