इतना अता किया था खुदा ने हुनर उसे

इतना अता किया था खुदा ने हुनर उसे।
देखा तो देखता ही रहा दीदावर उसे।।

मुझसे कहीं ज्यादा मुझको वो समझता है।
जानता हूँ मैं भी उससे बेशतर उसे।।

अपनी निगाहें बाँध दी है उसके पाँव में।
यूँ ही नहीं कहती है आँखे हमसफर उसे।।

बातों के जख्मों का तर्जबा उसको ऐसा है।
कहता है कि लगते हैं भले नेश्तर उसे।।

थी उसकी हिचकियों की उम्र मेरे बराबर।
इतना याद हमने किया उम्रभर उसे।।

मुमकिन नहीं है फिर भी करता हूँ कोशिशें।
क्या बुरा है भूल जाऊँ मैं अगर उसे।।

आँखों के माथे पर पसीना आ गया राकिम।
पलकों के पाँव थक गये हैं ढूँढकर उसे।।