जमीं देखकर चलो

यकसाँ रखो पाँव जमीं देखकर चलो
पहले करो फैसला फिर राह पर चलो

ताजिन्दगी नचाती है उँगलियों पे भूक
कहता है पेट पाँव से कि उम्रभर चलो

चलते हैं हुजूम में लकीरों के फकीर
अपना उसूल है लकीरें छोड़कर चलो

रास्तों की नब्ज को टटोलते रहो
अच्छा लगे अगर मिजाजे रहगुजर चलो


कुछ देर के सफर के बाद शाम मिलेगी
कुछ दूर दोपहर की धूप ओढकर चलो

चारो तरफ है घेरे में दहलीज मौत की
आखिर है पहुँचना वहीं चाहें जिधर चलो

हासिल है तजर्बा हमें राहें बदलने से
राकि़म जी कैसी राह पर किस कदर चलो