किस तरह के रिश्ते को कैसे निभाना था

किस तरह के रिश्ते को कैसे निभाना था
आसाँ नहीं ये मसअला समझ में आना था

बाप थे बुजुर्ग माँ बीमार थी मगर
पुराना ही सही सिर पे शामियाना था

अल्लाह नें मजलूमों को सिर ही क्यों दिया
हर बात पे जब हर जगह इसे झुकाना था

तुझसे मिल के आज यही सोच रहा हूँ
क्या याद रखना था मुझे क्या भूल जाना था

वो तो जानते थे हर सवाल का जवाब
मंसूबा उनका बस हमें आजमाना था

इक दूसरे के सुख में दुख में होते थे शरीक
ऐसे भी आदमी थे ऐसा जमाना था

है इत्तिफाक लग गया है तीर जगह पर
कह रहें हैं लोग कि मुश्किल निशाना था

दरअस्ल इरादा खुदकशी का था राकि़म
समन्दर में मोती ढूँढना तो इक बहाना था