दरवाजे की जंजीर हिलाने के बावजूद
कोई नहीं आया मेरे आने के बावजूद
मुझमें इतनी आग कहाँ से इकट्ठा थी
जलती है जमीं खाक उठाने के बावजूद
मजबूरियों के बोझ से हिलती न थी जुबान
हम सुनते रहे सिर्फ सुनाने के बावजूद
देखा है दरम्यान ढूँढकर के जिन्दगी
कुछ न मिला नब्ज दबाने के बावजूद
निगाह थी कि गैर के ही ऐब पर रही
अपने ऐब लाख गिनाने के बावजूद
बेचैन रहेंगे वो मेरे खाक होने तक
करार नहीं आग लगाने के बावजूद