मेरा फेंका हुआ पत्थर मेरे सर लौट आता है


गलत मंसूबा उम्मीदों से दीगर लौट आता है
मेरा फेंका हुआ पत्थर मेरे सर लौट आता है

बहुत अरमान हैं शायद तुम्हारे मिलने से उसको
बिना दस्तक दिये दर से वो अक्सर लौट आता है

निशानी है बड़े होने की रखना खुद को काबू में
हदों से अपनी टकराकर समन्दर लौट आता है


मुआफी का भरम मेरा यकायक टूट जाता है
अचानक जब मेरा कातिल पलटकर लौट आता है

फतह की भी तमन्ना है मगर मुश्किल ये है राकि़म
दिखे मुश्किल अगर कोई तो डरकर लौट आता है