जेहन जब गुजरे लम्हों को कभी वापस बुलाता है
सिवा तेरे हमें अक्सर बहुत कुछ भूल जाता है
हमारे हौसलों को देखकर सूरज नें पूछा था
जुगनुओं के लिए लश्कर मुखातिब कौन आता है
बसा ली है निगाहों में उसकी सूरत जबसे हमनें
हमारा चेहरा अब आईना कब हमको दिखाता है
भरे रहते हैं अखबारों के पन्ने इस्तेहारों से
खबर की जगह अब अखबार तो बाजार लाता है
फकीरों की कतारे हैं लकीरों पर खड़ी राकि़म
उसे कहते हैं पागल जो नयी राहें बनाता है
सिवा तेरे हमें अक्सर बहुत कुछ भूल जाता है
हमारे हौसलों को देखकर सूरज नें पूछा था
जुगनुओं के लिए लश्कर मुखातिब कौन आता है
बसा ली है निगाहों में उसकी सूरत जबसे हमनें
हमारा चेहरा अब आईना कब हमको दिखाता है
भरे रहते हैं अखबारों के पन्ने इस्तेहारों से
खबर की जगह अब अखबार तो बाजार लाता है
फकीरों की कतारे हैं लकीरों पर खड़ी राकि़म
उसे कहते हैं पागल जो नयी राहें बनाता है